झारखण्ड का प्रागैतिहासिक काल। Prehistoric period of Jharkhand । In Hindi
झारखंड का प्रागेतिहासिक काल
➤ वह काल जिसके कोई लिखित साक्ष्य उपलब्ध नहीं है , बल्कि पूरी तरह से परातात्विक साक्ष्यों पर निर्भर है, उसे प्रागेतिहासिक काल कहते है |
➤ प्रागेतिहासिक काल को तीन भागो मे बांटा गया है |
1) पुरापाषाण काल
➤ इसका काल का 25 लाख ई॰ पु॰ से 10 हजार तक माना जाता है |
➤ इस काल के लोग सिकारी और खाध संग्राहक थे | इस काल के लोगो को कृषि का ज्ञान नही था तथा पशुपालन का प्रारम्भ नही हुआ था |
➤ इस काल मे आग की जानकारी हो चुकी थी, परन्तु उसके उपयोग का ज्ञान नही था |
➤ झारखण्ड मे इस काल के अवशेष हजारीबाग, बोकारो,रांची, देवघर, पश्चिमी सिंहभूम, पूर्वी सिंहभूम, आदि क्षेत्रो से प्राप्त हुए है|
➤ हजारीबाग से पाषाण कालीन मानव द्वारा निर्मित पत्थर औज़ार मिले है|
2) मध्य पाषाण काल
➤ इसका काल का 10 हजार ई॰पु॰ से 4 हजार ई॰ पु॰ तक माना जाता है|
➤ इस काल मे पशुपालन की शुरुआत हो चुकी थी|
➤ झारखण्ड मे इस काल के अवशेष दुमका, पलामू, धनबाद, रांची, पश्चिमी सिंहभूम, पूर्वी सिंहभूम, आदि क्षेत्रो से मिलता है
3) नवपाषाण काल
➤ इसका काल का 10 हजार ई॰ पु॰ से 1 हजार ई॰ पु॰ तक माना जाता है |
➤ इस काल मे कृषि की शुरुआत हो चुकी थी|
➤ इस काल मे आग का उपयोग तथा कुंभकारी का प्रारम्भ हो चुका था |
➤ झारखण्ड मे इस काल के अवशेष रांची, लोहरदगा, पश्चिमी सिंहभूम, पूर्वी सिंहभूम आदि क्षेत्रो से मिलता है |
➤ छोटानागपुर प्रदेश मे इस काल 12 हस्त कुठार पाये गए है |
नोट:- नवपाषाण काल को तीन भागो मे बांटा गया है
1) ताम्र पाषाण काल
➤ इस काल का 4 हजार ई॰ पू॰ से 1 हजार ई॰ पू॰ तक माना जाता है |
➤ यह काल हड़प्पा पूर्व काल, हड़प्पा काल तथा हड़प्पा पश्चात काल तीनों से संबन्धित है |
➤ पत्थर के साथ-साथ तांबे का प्रयोग होने के कारण इस काल को ताम्र पाषाण काल कहा जाता है
➤ मानव द्वारा प्रयोग की गयी पहली धातु तांबा थी |
➤ इस काल मे असुर, बिरजिया, तथा बिरहोर जंजातियाँ तांबा गलने तथा उससे संबन्धित उपकरण बनाने की कला से परिचित थे |
➤ झारखण्ड के कई स्थानो से तांबा की कुल्हाड़ी तथा हजारीबाग के बाहरगंडा से तांबे की 49 खानो के अवशेष मिले है|
2) कांस्य युग
➤ इस युग मे तांबे मे टीन मिलाकर कांसा निर्मित किया जाता था तथा उससे बने उपकरणो का प्रयोग किया जाता था |
➤ छोटानागपुर क्षेत्र के असुर (झारखण्ड की प्राचीनतम जनजाति ) तथा बिरजिया जनजाति को कांस्ययुगीन औजारो का प्रारम्भकर्ता माना जाता है |
3) लौह युग
➤ इस युग मे लोहा से बने उपकरणो का प्रयोग किया जाता था |
➤ झारखण्ड के असुर तथा बिरजिया जनजाति को लौह युग से निर्मित औजारो का प्रारम्भकर्ता माना जाता है |
➤ असुर तथा बिरजिया जंजातियों ने उत्कृस्ट लौह तकनीक का विकास किया|
➤ इस युग मे झारखण्ड का संपर्क सुदूर बिदेशी राज्यो से भी था |
➤ झारखण्ड मे निर्मित लोहे को इस युग मे मेसोपोटामिया तक भेजा जाता था, जहां दशमिक मे इस लोहे से तलवार का निर्माण किया जाता था |

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